शिक्षामित्रों ने जीवन में उतार चढाव के बाद भी रखा संघर्ष जारी
शिक्षामित्रों ने जीवन में उतार चढाव के बाद भी रखा संघर्ष जारी
लखनऊ। डीकेएस टीवी न्यूज़ नेटवर्क। उत्तर प्रदेश के कोने कोने में सुदूर ग्रमींण क्षेत्रों में स्थापित प्राथमिक विद्यालयों में बीते दो दशकों से प्रदेश के गरीब, शोषित, वंचित तबके के लोगों के नौनिहालों वा भारत देश के भविष्य रूपी छोटे छोटे बच्चों को पढ़ाने में अपने जीवन काल का वह अनमोल समय देते हुए अब तक चले आ रहे हैं।
शिक्षामित्रों की बात करे तो इनकी प्राथमिक विद्यालयों में उस समय पर नियुक्ति की गई थी जब विद्यालय बंद पङे थे।उसे संचालित करने वाला कोई नहीं था। उस समय शिक्षामित्रों की नियुक्ति हुई थी। मात्र 30 दिवसीय आधारभूत प्रशिक्षण पाने वाले शिक्षामित्रों ने थोङे से समय में अपनी कार्यशैली से जनता वा सरकार दोनों का मन मोह लिया था।
सरकारें बदलती रही निजाम बदलते रहे। बीच-बीच में शिक्षामित्रों को शिक्षण कार्य करने के साथ ही साथ सरकारों को भी साधना पङता था। वह भी इसलिए कि इनके जीवन में समस्याओं का अंबार लगा हुआ था। एक समय था कि जब शिक्षामित्र अपने पिता की मृत्यु पर मुखग्नि भी देने जाता था तो उसकी संविदा समाप्त हो जाया करती थी। क्योंकि इन्हें कोई अवकाश नहीं मिलता था। विद्यालय में अनुपस्थिति की दशा में इनकी संविदा समाप्त हो जाया करती थी। शुद्ध भाषा में कहा जाए तो बिल्कुल रोबोट बना दिया था सरकार ने, जिसके चलते शिक्षामित्रों को मानवीय जीवन में अपार कठिनाइयों को सहना पड़ता था। इसके बाद भी विद्यालय और बच्चों के लिए समर्पित भाव से शिक्षण कार्य करने में ही अपना सम्मान समझते थे।
लेकिन कहीं न कहीं इन बेचारे शिक्षामित्रों के मन में एक बात ज़रूर उपजती थी कि निश्चित रूप से एक दिन हम होंगे कामयाब।
समय गुजरता गया। सरकार से गुहार लगाने की थोङी सी जागरूकता आई और धरना प्रदर्शन करके अपनी बात सरकारों तक पहुंचाने में कामयाब हुए लेकिन ऊंट के मुंह में जीरा की कहावत चरितार्थ करते हुए तत्कालीन सरकारों ने थोङी बहुत मांग मानी। बहुतों बार धरना प्रदर्शन किया। लाठियां भी खूब खाई।
समय बदलता गया। एक समय ऐसा भी आया कि शासन स्तर से प्रयास किया गया और जो भी स्नातक शिक्षामित्र थे उनका दूरस्थ बीटीसी का प्रशिक्षण भी करवाया गया। पहले और दूसरे बैच का प्रशिक्षण पूरा करने वाले शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक का दर्जा मिल गया। अब शिक्षामित्र भी वर्षों में की गई मेहनत का फल सहायक अध्यापक की नौकरी प्राप्त कर फूला नहीं समाया।
उस समय तीसरे बैच का भी दूरस्थ बीटीसी प्रशिक्षण पूर्ण कर चुके शिक्षामित्रों को भी आस लगी थी कि अब मेरी बारी आयेगी। लेकिन उसी बीच में कानून का हवाला देकर पहले हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट में भी शिक्षामित्रों को परेशान किया जाने लगा। और फिर अंततोगत्वा एक दिन ऐसा आया कि मानो शिक्षामित्रों के ऊपर पहाड़ सा टूट गया, बज्रपात सा हो गया और सहायक अध्यापक के पद पर हुए समायोजन को रद्द कर दिया गया।
समय गुजरता गया सरकार से लड़ने की थोड़ी सी जागरूकता आई और धरना प्रदर्शन करके अपनी बात सरकारों तक पहुंचाने में कामयाब हुए लेकिन ऊंट के मुंह में जीरा की कहावत चरितार्थ करते हुए तत्कालीन सरकारों ने थोड़ी बहुत मांग मानी बहुत बार धरना प्रदर्शन किया लाठियां भी खूब खाई। समय बदलता गया एक समय आया कि शासन स्तर से प्रयास किया गया और जो भी स्नातक शिक्षा मित्र थे उनका दूरस्थ बीटीसी का प्रशिक्षण भी करवाया गया। पहले और दूसरे बैच का प्रशिक्षण करने वाले शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक का दर्जा मिल गया अब शिक्षामित्र भी वर्षों में की गई मेहनत के फल को नौकरी के रूप में सहायक अध्यापक का दर्जा प्राप्त कर फूला नहीं समाया।
तीसरे बैच के शिक्षा मित्रों को भी आस लगी थी कि अब मेरी बारी आएगी उसी बीच में कानून का हवाला देकर हाईकोर्ट में भी शिक्षामित्रों को परेशान किया जाने लगा।और फिर अंततोगत्वा एक दिन ऐसा आया कि मानव शिक्षामित्रों के ऊपर वज्रपात हुआ और सहायक अध्यापक के पद पर हुए समायोजन को रद्द कर दिया गया।
उस समय जब हाई कोर्ट से शिक्षा मित्रों का समायोजन रद्द हुआ तो उस समय सुबह में सपा जिसकी मुखिया अखिलेश यादव और केंद्र में भाजपा नरेंद्र मोदी की सरकार थी। उसी दौरान जब शिक्षामित्रों ने प्रदर्शन किया तो उनके धरने को संबोधित करने के लिए बतौर सांसद गोरखपुर योगी आदित्यनाथ जो कि आज भाजपा की सरकार की सुबह में मुख्यमंत्री हैं ने जाकर खूब भाषण सुनाएं और तरकीब भी बताए। शिक्षा मित्रों के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ने का लंबा चौड़ा वादा भी किया। जिसका वीडियो वायरल काफी दिनों तक हो रहा था को सुनकर आम शिक्षा मित्रों में एक आस जगी।
शिक्षामित्र हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए। समय ने करवट लिया। भाजपा की सरकार उत्तर प्रदेश में भी बनी। यह सब देखकर शिक्षामित्रों को काफी संतोष मिला। शायद अब हमारा काम निष्कंटक हो जाएगा। लेकिन शिक्षामित्रों को इतना बुरा दिन देखना पड़ेगा शायद उन्हें मालूम नहीं था। आखिर में वह दिन भी आ गया और शिक्षा मित्रों का समायोजन सुप्रीम कोर्ट से भी अवैध घोषित कर दिया गया। अर्थात रद्द कर दिया गया। फिर क्या था? चारों तरफ कोहराम मच गया। एक के बाद एक शिक्षामित्र मौत के मुंह में हजारों शिक्षामित्र समा गए और अब तक अवसाद के चलते लगभग 5000 शिक्षा मित्र मित्रों की मौत हो चुकी है। लेकिन दुख इसलिए होता है कि किसी भी चाहे नेतृत्व हो या समाजसेवी या जनप्रतिनिधि कोई भी हो किसी ने भी इन शिक्षा मित्रों की तरफ घूम कर देखने की जहमत नहीं की।
करता भी कौन?
अरे भाई करना तो उसको था जो कि इस समय हमारे भारतवर्ष के प्रधानमंत्री हैं नरेंद्र दामोदरदास मोदी। क्योंकि यह बात उस समय की है जब बनारस की जनसभा को संबोधित कर रहे थे। तब उन्होंने 2014 में भोले भाले शिक्षामित्रों से भोले बाबा की नगरी से वादा किया था और कहा था कि शिक्षा मित्र साथियों चिंता ना करो। हमारी सरकार आएगी तब हम तुम्हारा संपूर्ण समाधान करेंगे।
लेकिन कुछ करना तो दूर सरकार दो बार बनी अभी तक शिक्षामित्रों को बद से बदतर जिंदगी वाला जीवन जीने को मजबूर करके तिल तिल मरने को छोड़ दिया। तनिक भी उफ़ नहीं किया। जबकि नौकरी स्थाई करने का वादा था समायोजन रद्द हो गया तब भी नहीं कुछ किया।
कुछ करते तो उत्तर प्रदेश के मुखिया भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री संत शिरोमणि महंत योगी आदित्यनाथ जो कि गोरखपुर की बातों को ही याद अपनी याद कर लेते तो भी निश्चित रूप से करते।
1999 और 2000 में सूबे की सरकार भारतीय जनता पार्टी की थी उसी समय शिक्षामित्रों का जन्म हुआ था।
शिक्षामित्रों के मानदेय के संबंध में बात करें तो आपको बताते चलें कि जब इनकी नियुक्ति प्रारंभ हुई थी तो उस समय 2250 रुपए मात्र इन शिक्षामित्रों को मिल रहा था। शिक्षामित्र अपनी मांगों के संबंध में स्थाई समाधान मांगते रहे और सरकारों ने कभी 24 सौ तो कभी 3000 और बहुत दया धर्म किया तो ₹35 सौ रुपए कर दिया। जिसमें शिक्षामित्रों के प्रथम व द्वितीय बैच का सहायक अध्यापक के पद पर समायोजन हो गया था। उसी समय तीसरे बैच के समायोजन से वंचित शिक्षामित्रों को उस समय की सूबे में समाजवादी सरकार में इनका मानदेय 10 हजार देने की घोषणा की और उसी दरमियान सूबे में चुनाव हुआ और निजाम बदल गए। उसी दौरान जहां भाजपा पार्टी ने अपने घोषणापत्र में कहा था कि सरकार बनने के 3 माह के भीतर स्थाई समाधान करेंगे। उसी के जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने समायोजन रद्द कर दिया। शिक्षा मित्र को यहां तो वही ढाक के तीन पात की तरह 35 हजार की जगह 35 सौ रुपए ही लगा।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को अपने विवेक के साथ इनके साथ रवैया अपनाने के लिए स्वतंत्र कर दिया। भाजपा सरकार ने 35 हजार से शिक्षामित्रों का वेतन के स्थान पर 10000 मानदेय कर दिया।
अरे भाई सरकार और उसमें बैठे नुमाइंदों व आम नागरिक को गहन विचार करना चाहिए कि यह वही शिक्षामित्र हैं जो कभी 2250 तो कभी 24 सौ और समय-समय पर 35 सौ रुपए पाते थे। उस समय सबको बहुत अच्छे लग रहे थे। काम वही कर रहे थे जो आज कर रहे हैं। जब उसी स्थान पर एक व्यक्ति स्नातक और बीटीसी पढ़ा सकता है उसको सारी सुख सुविधाएं मिल सकती हैं जो मिलनी चाहिए और मिलती भी है तो वहीं पर समान कार्य करने वाले शिक्षामित्रों को सम्मानजनक दर्जा सरकार क्यों नहीं देती है सरकार।
शिक्षामित्र स्नातक है परास्नातक है बीटीसी है टीटी भी पास है। उसके बाद भी समाज के अंदर भूखे भेड़ियों की शक्ल में शिक्षामित्रों को इंटर पास बोलते हैं। मैं इस प्रकार से पूछना चाहता हूं कि भला इन बेचारे गरीबों के बेटे और बेटियों को जो आज का शिक्षामित्र है।यह वही शिक्षामित्र है जो अपने समय का अपनी ग्राम पंचायत के 2 दर्जन से अधिक लोगों के बीच चयन होकर आया है। नियुक्ति भी जिलाधिकारी के अधीन हुई है फिर इन शिक्षा मित्रों के साथ भेदभाव कैसा?
अपनों ने भी कम नहीं मारी शिक्षामित्रों को ठोकर
इस विषय पर जानकारी के अनुसार बताते चलें की शुरुआत का दौर था उत्तर प्रदेश में उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षा मित्र संघ के प्रदेश अध्यक्ष उस समय अभिमन्यु तिवारी हुआ करते थे। उन्हीं के कार्यकाल में लगभग सन 2004 की बात है धरना लगाने और अपनी मांगों को मनवाने के लिए शिक्षामित्रों से भी भीड़ बुलाने के लिए कहा गया और शिक्षामित्र हजारों की संख्या में लखनऊ धरना स्थल पहुंचे।
लेकिन उधर संगठन द्वारा शिक्षामित्रों की बात को नजरअंदाज कर दिया गया। उस समय जब वहां से नाराज होकर गाजी इमाम आला, शिव कुमार शुक्ल, रमेश मिश्र, पुनीत चौधरी आदि जिम्मेदार साथी चले आए तो उस समय शिक्षा मित्र संघ के संरक्षक के तौर पर पदाधिकारी थे जितेंद्र शाही जो आज आदर्श वेलफेयर एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष है, ने संगठन को तोड़ दिया और स्वयं उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ की गोद में बैठ गए और बैठे रह गए।
लोगों का यहां तक कहना है कि जब किसी शिक्षा मित्र संघ ने कुछ भी करना चाहा और शाही को मालूम हो जाए कि फलां शासनादेश आने वाला है तो उसका ढिंढोरा पहले पीटने लगते थे। जिससे कि श्रेय मिल जाए। टीटी की बात पर भी लोग जिक्र करते हैं कि तथाकथित लोग जल समाधि लेने पर तुले हुए थे और आज सबको जल समाधि की ओर ले जा रहे हैं। बहुत कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है। हमारे पाठक दर्शक भी भली प्रकार से जानते हैं कि कौन कैसा है। और फिर भी अंधभक्त शिक्षा मित्र जुमले बाज संगठन के नेताओं के चंगुल में फंसे पड़े हैं ।
उठो जागो और चल पड़ो। जब तक लक्ष्य ना मिले, मत रुको। जहां भी शिक्षा मित्र की बात हो जिस भी मंच से हो वहां हमें जाना चाहिए। क्योंकि यह वही चिर परिचित शिक्षामित्र हैं जो बंद पड़े स्कूलों के तालों को खोलकर स्कूलों में किलकारियों का गुंजायमान कराया था। अथक परिश्रम करके प्रदेश में शिक्षा के स्तर को उठाया था। प्रदेश में ही नहीं देश में शिक्षामित्रों की एक अनोखी पहचान बनी थी।
कुल मिलाकर कहने का मतलब है कि अब वह समय आ गया है। शिक्षामित्रों के भविष्य को संवारने का और निश्चित रूप से सरकार को शिक्षामित्रों की मांग को मान लेना चाहिए।
धर्मेन्द्र शुक्ल
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