ध्रुव चरित्र की कथा सुन मंत्र मुग्ध हुए श्रोता
ध्रुव चरित्र की कथा सुन मंत्र मुग्ध हुए श्रोता
रिपोर्ट: देवेन्द्र पाण्डेय
अयोध्या। आर्य प्रयास न्यूज नेटवर्क। शाहगंज परसौली ढेमा वैश्य में श्रीधाम अयोध्या से पधारे परम पूज्य स्वामी गजानंद शास्त्री जी महराज ने तृतीय दिवस की कथा में श्रवण पान कराते हुए कहा कि ये ध्रुव चरित्र संस्कार चरित्र है, दिव्य संस्कार आज माता सुनीति ने अपने बालक ध्रुव को दिया है। जब ध्रुव जी महाराज अपने पिता उत्तानपद की गोद में बैठना चाहते थे।तो उनकी सौतेली माता सुरुचि ने कहा कि यदि पिता के गोद में बैठना चाहते हो तो जाओ जाकर के भगवान की तपस्या करो, जब भगवान प्रगट हो तो उनसे वरदान मांगना की अगला जन्म हमारे गर्भ से हो, आज सुरुचि अपने गर्भ को भगवान से बड़ा बता रही हैं, और बालक ध्रुव ने अपनी माता सुनीति से पूरा, वृतांत बतलाया तो मां ने कहा कि पुत्र तुम्हारी छोटी मां ने जो कहा है सत्य कहा है, कि भगवान का भजन करो इसी से तुम्हारा कल्याण होगा माता के वचनों को मानकर ध्रुव जी 5 वर्ष की छोटी आयु में भगवान के भजन के लिए चल पड़े,
हम सभी को भी चाहिए कि हम सब उम्र का ध्यान न देते हुए भगवान का भजन करते रहना चाहिए, गुरु की शरण में जाकर मंत्र दीक्षा लेकर परमात्मा की कृपा को प्राप्त करना चाहिए। क्योंकि विना गुरु के जीवन का कल्याण व भवसागर से पार नहीं पाया जा सकता है।
" गुरु विनु भवनिधि तरहि न कोई।
जो विरंचि शंकर सम होई।।,,
बिना गुरु के हम भवसागर से पार नहीं हो सकते हैं।नारद जी जैसे दिव्य महात्मा के द्वारा ध्रुव जी को मन्त्र मिला और जीवन का कल्याण हुआ। आज भी ध्रुव तारा अटल और सत्य है।
आचार्य सुनील तिवारी, पं हिमांशु शास्त्री व प्रियव्रत शुक्ला आलोक ने दिव्य वैदिक मन्त्रोंच्चारण के साथ आरती कराये। मुख्य यजमान-श्री राम करन पाठक ने सपरिवार आरती उतारी
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