अब और केतिक दिन धीर धरी

 अब और केतिक दिन धीर धरी



लरिका-सयान-बुढ़वा- बुढ़िया का,बातन मा अरझाये हौ।

कुछ काम कहौं न देखि परै,बस चौगिरदा दौराये हौ।

आधार कार्ड,राशन कारड,रोजै अपडेट करावत हौ।

तुम कहत अहौ सब फ्री अहै,मुल जेब खड़े कटुवावत हौ।

ई आन लैन परक्रिया मा,जनता पै मानौ भीर परी।

अब और केतिक दिन धीर धरी।


जब रहा इलेक्शन मूड़े पै,तौ वादा करत गयौ भारी।

सबका रोजगार दिहौ झूठै,कगजेन पै नोकरी सरकारी।

बातिन-बातिन मा तू सबकै,दुःख पीरा हरे रह्यौ बाबा।

हम जानि नहीं पावा तनिकउ,का मन मा धरे रह्यौ बाबा।

मरि के आन्हर भे युवा वृद्ध,कौनव उपाय न दीख परी।

अब और केतिक दिन धीर धरी।


ई वित्तविहीन मास्टरन के,न मानदेय कै ख्याल किहौ।

वादा तौ भारी किहे रह्यौ,मुल कुर्सी पौतै ऱयाल दिहौ।

पिछली सरकार मा थोर बहुत,जो मिलत रहा ऊ बंद किहौ।

औ प्राइवेट स्कूलन पै, बहुतै बड़का छल छंद किहौ।

इनका न शिक्षक मानत हौ,ई बात कह्यौ है खरी-खरी।

अब और केतिक दिन धीर धरी।


खेतिहर-मजदूर- किसानन कै,हालत खराब न ध्यान किहौ।

बड़का-बड़का रोजगारिन का,बड़का- बड़का अनुदान दिहौ।

खुब घेरौ भूमि किसानन कै,औ कह्यौ मुअबजा जारी है।

रोजगारौ मिलि जैहैं इनका,आडर जारी सरकारी है।

फैक्टरी लागि न करखाना,अब के इनकै दुःख पीर हरी।

अब और केतिक दिन धीर धरी।


अनुदेशक-शिक्षामित्र और शिक्षक तदर्थ सब रोइ रहे।

छूटा रोजी रोजगार अहै,जिनगी सब आपन खोइ रहे।

सरकारी नोकरी वालेव अब,सब झँखत और झुरात अहैं।

पेंशन सब इनकै काट दिहेव,अब यहर वहर बिलखात अहैं।

अब आवत जसक बुढापा है,वैसन आँखिन मा नीर भरी।

अब और केतिक दिन धीर धरी।


कवि-साहितकार-कलाकारन कै,पुरस्कार तक खाय गयौ।

सम्मान-मानदेय-सुख सुविधा का,राक्षस जैस चबाय गयौ।

आपन वेतन भत्ता सुविधा,चौगुना बढ़ाये जात अहौ।

जनता कै पैसा लीलत हौ,न तनिको भै शरमात अहौ।

तोहरे लेखा तौ चहुँओरी,ई दुनिया लागै हरी-भरी।

हम और केतिक दिन धीर धरी।


दुनियाभर का बोलवावत हौ,औ छप्पन भोग खवावत हौ।

है देश हमार बहुत आगे,झूंठै डंका बजवावत हौ।

फैली भुखमरी गरीबी है,न कतहूँ तुहैं लखाय परै।

जेस सावन केर गदहवन के,हरियाली सिरफ देखाय परै।

तोहरी थरिया बरहो व्यंजन,हमरी घर भर कै पीर भरी।

अब और केतिक दिन धीर धरी।


जीएसटी-इनकमटैक्स   बदे,व्यापारिन का धमकाये हौ।

तू थाना और कचहरी मा,भारी लुटहौ मचुवाये हौ।

जे अधिकारी साहब बड़का,है घूस लेइ मा पकरि जात।

ऊ तनिकउ न हैरान होत,बस घूसै दइके छूटि जात।

तू भले अहौ निरवंश मुला,तुमहू का है माया जकरी।

अब और केतिक दिन धीर धरी।


अधिकारी-व्यापारी- जनता,सब तुहँसे हलाकान बाटे।

जौ सबका तू काटै दौरौ,तौ जाबौ फिरि केहिके घाटे।

इनहू सब मौका ताड़े हैं,जौ औबौ तू इनके घाटे।

यैं सब मिलि तुहैं भेजि दैहैं,जावा चाहौ जौने घाटे।

ई जनता जौ हूली अबकी,दिनही मा तारा दीख परी।

अब और केतिक दिन धीर धरी।


मंदिर-मस्जिद,हिन्दू-मुस्लिम कहि,जनता का लड़वाये हौ।

ना कौनव रोजगार मांगै,बस इनही मा भटकाये हौ।

जब तक ई खाली पेट रही,न भाव भजन अच्छा लगिहैं।

जब इनका समझ आय जाई,यैं तब तुहँसे व्यौरा मंगिहैं।

ई फ्री कै रयुरी बंद करौ,सोचौ हालत कैसे सुधरी।

अब और केतिक दिन धीर धरी।।


अब और केतिक दिन धीर धरी।।


कर्म राज शर्मा "तुकांत"

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