सत्संग के बिना मनुष्य विवेकवान नही बन सकता: प० जयप्रकाश शास्त्री


सत्संग के बिना मनुष्य  विवेकवान नही बन सकता: प० जयप्रकाश शास्त्री 

रिपोर्ट:वेद प्रकाश तिवारी 

मिल्कीपुर, अयोध्या। आर्य प्रयास न्यूज नेटवर्क

जब भी मानव के जीवन में परमात्मा की कृपा होती है अथवा पुण्योदय होता हैं तभी सत्संग समागम हो पाता है ।मनुष्य के जन्म जन्मांतर के पुण्यों का उदय होने पर ही श्रीमद् भागवत जैसी भगवान की दिव्य कथा श्रवण का सौभाग्य मिलता है।भागवत रूपी गंगा की धारा पवित्र और निर्मल है, जो पापियों को भी तार देती है। 

ये बातें मिल्कीपुर तहसील के केशवपुर चिलबिली गांव  में संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा सुनाते हुए पावन धाम  अयोध्या से पधारे कथा व्यास पंडित जयप्रकाश तिवारी शास्त्री (अनुरागी ) जी महराज ने प्रवचन में कहीं।

चल रही संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन बृहस्पतिवार को कथा व्यास पंडित जयप्रकाश तिवारी शास्त्री जी महाराज ने 

कथारस का पान कराते हुए कहा कि श्रीमद् भागवत कथा का एक-एक शब्द अमृत के समान है।मनुष्य इसे पानकर अपने को धन्य  बना सकता है। सत्संग को जो मनुष्य तन और मन लगाकर सुनते हैं उनका पूरा जीवन बदल जाता है। सत्संग में आने से विचार बुद्ध कर्म और आचरण बदलता है। धीरे-धीरे सत्संग से पूरा जीवन बदल जाता है। आस्था और विश्वास ईश्वर को प्राप्ति करने के सरल साधन है। भगवत प्राप्ति के लिए निश्चय और परिश्रम होना जरूरी है। मनुष्य के मन में विकार व घृणा आती है। भगवान उनसे दूर हो जाते हैं। जब कोई भगवान को न पाकर विरह में होता है ।तो ‌श्रीकृष्ण उसपर अनुग्रह करते हैं।उसे दर्शन देते हैं। 

भगवान श्री कृष्ण की लीलाएं हमारे जीवन के लिए प्रेरणादायक हैं। भगवान कृष्ण ने बचपन में अनेक लीलाएं की। भगवान बाल कृष्ण रुप सभी का मन मोह लिया करते थे। नटखट स्वभाव के चलते यशोदा मां के पास उनकी हर रोज शिकायत आती थी। मां उन्हें कहती थी कि प्रतिदिन तुम माखन चुरा के खाया करते हो, तो वह तुरंत मुंह खोलकर मां को दिखा दिया करते थे। कि मैंने माखन नहीं खाया।भगवान कृष्ण अपनी सखाओं और गोप-ग्वालों के साथ गोवर्धन पर्वत पर गए थे। वहां पर गोपिकाएं 56 प्रकार का भोजन रखकर नाच गाने के साथ उत्सव मना रही थीं। कृष्ण के पूछने पर उन्होंने बताया कि आज के ही दिन देवों के स्वामी इंद्र का पूजन होता है। इसे इंद्रोज यज्ञ कहते हैं। इससे प्रसन्न होकर इंद्र व्रज में वर्षा करते हैं, जिससे प्रचुर अन्न पैदा होता है।भगवान कृष्ण ने कहा कि इंद्र में क्या शक्ति है। उनसे अधिक शक्तिशाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है। इसके कारण ही वर्षा होती है, अत: हमें इंद्र से बलवान गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए। बहुत विवाद के बाद श्री कृष्ण की यह बात मानी गई और व्रज में गोवर्धन पूजा की तैयारियां शुरू हो गईं। जब जब धर्म की हानि होती है तब तक भगवान धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेकर पापियो व अत्याचारियों का विनाश करते है। इस मौके पर राम उचित दुबे, उमाशंकर दुबे ,मदन तिवारी ,द्वारिका प्रसाद पाण्डेय,राम अचल तिवारी, देवकीनंदन ,शिवकुमार ,शिवनंदन तिवारी ,हौसला प्रसाद, लवकुश तिवारी, मलखान तिवारी, अमन, आकाश ,हरि ओम ,अनिकेत ,हरिशंकर ,आदि मौजूद रहे। कार्यक्रम के अंत में मुख्य यजमान पंडित बृजनंदन तिवारी एवं धर्म पत्नी श्रीमती पूनम तिवारी ने व्यास पीठ की आरती उतारी तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर कथा में आए श्रोताओं के प्रति आभार प्रकट किया।

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