उच्चतम न्यायालय ने निरस्त की कृषि विश्वविद्यालय की याचिका


 उच्चतम न्यायालय ने निरस्त की कृषि विश्वविद्यालय की याचिका


कृषि वैज्ञानिकों को 62 साल में सेवानिवृत्ति पर लगी मुहर


 सेवानिवृत्ति वैज्ञानिकों को जल्द मिलेगी तैनाती

  

मिल्कीपुर अयोध्या। आर्य प्रयास न्यूज नेटवर्क 


रिपोर्ट:- वेद प्रकाश तिवारी 


आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज समेत प्रदेश के कृषि वैज्ञानिकों को भी अब 62 साल की आयु पूरी होने पर ही सेवानिवृत्ति किया जा सकेगा। 

विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों की ओर से अदालत में इसकी पैरवी भी की गई है। कृषि वैज्ञानिक मिथिलेश पाण्डेय के अनुसार इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाले भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद उत्तर प्रदेश सरकार और विश्वविद्यालयों की विशेष अनुमति याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया।

उन्होंने बताया कि कृषि विश्वविद्यालय अधिनियम 1958 के तहत प्रदेश के विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केंद्र नार्प एवं एक्रिप योजनाओं में कृषि वैज्ञानिकों की नियुक्ति की गई। सभी कृषि वैज्ञानिक विश्वविद्यालय में शिक्षण दायित्व भी निभाते रहे हैं।2019 में प्रदेश सरकार ने विश्वविद्यालय अधिनियम में बदलाव करते हुए शिक्षक की परिभाषा बदल दी। 14 जून को 2022 को आदेश जारी कर कृषि विज्ञान केंद्र नार्प  एक्रिप में तैनात कृषि वैज्ञानिकों को शिक्षक मानने से मना कर दिया।

 इसी क्रम में विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों को 60 साल की उम्र पर सेवानिवृत्ति करना शुरू कर दिया। इसके विरोध में हाईकोर्ट इलाहाबाद में याचिका दाखिल की 23 नवंबर 2022 को हाई कोर्ट की ओर से अंतरिम आदेश जारी कर विश्वविद्यालयों को आदेश दिया गया कि विश्वविद्यालय ने इसे नहीं माना। 17 मई 2023 को डबल बेंच का निर्णय कृषि वैज्ञानिकों के पक्ष में आया है। इसके बाद भी विश्वविद्यालय ने किसी को ज्वाइन नहीं कराया उल्टा बारी-बारी से विश्वविद्यालय अखिल भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर दी थी।

 शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की और सभी को खारिज कर दिया है। अब हाई कोर्ट इलाहाबाद का आदेश लागू करना होगा सीएसए से सेवानिवृत्त हुए कृषि वैज्ञानिक डॉ मिथलेश पाण्डेय ने बताया कि विश्वविद्यालय की प्लान और नॉन प्लान के पदों पर नियुक्ति के समय भर्ती नियम अर्हता शर्त भी एक जैसी रही और कृषि वैज्ञानिकों को कृषि विज्ञान केदों के साथ ही विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य के लिए भी तैनात किया जाता रहा है।

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